श्याम विवर: 10 विचित्र तथ्य

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श्याम विवर: 10 विचित्र तथ्य



श्याम विवर या ब्लैक होल! ये ब्रह्मांड मे विचरते ऐसे दानव है जो अपनी राह मे आने वाली हर वस्तु को निगलते रहते है। इनकी भूख अंतहीन है, जितना ज्यादा निगलते है, उनकी भूख उतनी अधिक बढ़्ती जाती है। ये ऐसे रोचक विचित्र पिंड है जो हमे रोमांचित करते रहते है। अब हम उनके बारे मे काफ़ी कुछ जानते है लेकिन बहुत सारा ऐसा कुछ है जो हम नही जानते है।

आईये देखते है, ऐसे ही दस अनोखे तथ्य जो शायद आप ना जानते हो!




1. श्याम विवर को शक्ति उनके द्रव्यमान से नही उनके आकार से मिलती है।

इस तथ्य पर विचार करने से पहले श्याम विवर को समझते है। किसी श्याम विवर के बनने का सबसे सामान्य तरिका किसी महाकाय तारे का केंद्रक का अचानक संकुचित होना है। इन महाकाय तारों मे एक साथ दो बल कार्य करते रहते है, उनका गुरुत्वाकर्षण तारे को संकुचित करने का प्रयास करते रहता है। संकुचन के कारण उष्मा उत्पन्न होती है और यह उष्मा इतनी अधिक होती है कि तारे के केंद्रक मे हायड्रोजन के नाभिक आपस मे जुड़कर हिलियम बनाना प्रारंभ करते है। हायड्रोजन से हिलियम बनने की प्रक्रिया को नाभिकिय संलयन कहते है। इस संलयन प्रक्रिया से भी उष्मा उत्पन्न होती है। हम जानते है कि उष्ण होने पर पदार्थ फ़ैलता है। गुरुत्वाकर्षण से संकुचन, संकुचन से उष्मा, उष्मा से संलयन, संलयन से उष्मा, उष्मा से फैलाव का एक चक्र बन जाता है। गुरुत्वाकर्षण से संकुचन और संलयन से फ़ैलाव का एक संतुलन बन जाता है और तारे अपने हायड्रोजन को जला कर हिलियम बनाते हुये इस अवस्था मे लाखो, करोड़ो वर्ष तक चमकते रहते है।


जब तारे का इंधन समाप्त हो जाता है तब यह संतुलन बिगड़ जाता है। इस अवस्था मे एक सुपरनोवा विस्फोट होता है, जिसमे तारे की बाह्य सतहे दूर फ़ेंक दी जाती है और केंद्र अचानक तेज गति से संकुचित हो जाता है। इस संकुचित केंद्र का गुरुत्वाकर्षण बढ़ जाता है। यदि तारे के संकुचित होते हुये केंद्रक का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से तीन गुणा हो तो उसकी सतह पर गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक हो जाता है कि पलायन वेग प्रकाश गति से भी अधिक हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि इस पिंड के गुरुत्वाकर्षण से कुछ भी नही बच सकता है, प्रकाश भी नही। इसकारण यह पिंड काला होता है।


श्याम विवर के आसपास का वह क्षेत्र जहां पर पलायन वेग प्रकाशगति के बराबर हो घटना क्षितिज(Event Horizon) कहलाता है। इस सीमा के अंदर जो भी कुछ घटित होता है वह हमेशा के लिये अदृश्य होता है।

अब हम जानते है कि श्याम विवर कैसे बनते है। अब हम जानते है कि इनका गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव इतना अधिक क्यों होता है।

गुरुत्वाकर्षण दो चिजो पर निर्भर करता है, पिंड का द्रव्यमान तथा उस पिंड से दूरी। तारे का केंद्रक का द्रव्यमान स्थिर है, बस वह संकुचित हुआ है। द्रव्यमान स्थिर है, तो इसका अर्थ यह है कि उसका गुरुत्वाकर्षण भी स्थिर है। लेकिन संकुचित केंद्रक का आकार कम हो गया है, अर्थात कोई अन्य पिंड उस संकुचित केंद्रक अधिक समीप जा सकता है। कोई अन्य पिंड उस संकुचित केंद्रक के जितने ज्यादा समीप जायेगा उसपर संकुचित केंद्र का गुरुत्वाकर्षण उतना अधिक प्रभावी होगा। और एक दूरी ऐसी भी आयेगी जब उसका गुरुत्वाकर्षण इतना प्रभावी हो जायेगा कि वह पिंड संकुचित केंद्र की चपेट मे आ जायेगा। श्याम विवर के मामले मे ऐसा होता है कि संकुचित केंद्र इतना ज्यादा संकुचित हो जाता है कि घटना क्षितिज की सीमा के अंदर प्रकाश कण भी श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण की चपेट मे आ जाते है।

इस सब का अर्थ यह है कि श्याम विवर का द्रव्यमान मायने नही रखता है, उस द्रव्यमान का एक छोटे से हिस्से मे संकुचित होना महत्वपूर्ण है। क्योंकि एक छोटे क्षेत्र मे द्रव्यमान आपको उसके अधिक समीप जाने का अवसर प्रदान करता है, और दूरी के कम होने पर गुरुत्वाकर्षण अधिक प्रभावी होते जाता है।

मान लिजिये कि अचानक सूर्य एक श्याम विवर मे परिवर्तित हो जाये तो पृथ्वी का क्या होगा ? क्या उसकी परिक्रमा रूक जायेगी ? या पृथ्वी इस श्याम विवर मे समा जायेगी ?

इस उदाहरण मे पृथ्वी पर कोई असर नही होगा क्योंकि सूर्य का द्रव्यमान वही है, गुरूत्वाकर्षण भी वही होगा। दूरी मे कोई अंतर नही आया है जिससे पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव भी वही रहेगा। पृथ्वी उसी तरह से परिक्रमा करते रहेगी। यह बात और है कि सूर्य से उष्मा नही मिल पाने से हम सभी शीत के कारण समाप्त हो जायेंगे।


2. श्याम विवर अनंत रूप से छोटे(infinitely smal) नही होते है।

श्याम विवर आकार मे छोटे होते है लेकिन कितने छोटे होते है? क्या वे गणितिय बिंदु के समान शून्य आयाम(शून्य लंबाई, चौड़ाई और उंचाई) के बिंदु होते है ?

हमने इस लेख मे देखा है कि ताराकेंद्रक संकुचित होते जाता है। यह

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