रोना मना है - ईद है
रोना मना है - ईद है
बड़े चाव से एक मियाँ ने, घर में बकरा पाला जी ।
बेटी पानी देती उसको, देता मियाँ निवाला जी ॥
स्वार्थ भरा था प्यार मियाँ का, पर बेटी का निश्छल था ।
सिर्फ ईद का इंतजार ही, बड़े मियाँ को पल - पल था ॥
ऐसी आयी ईद कि आँगन, आज लहू से सन बैठा ।
रोज़ निवाला देने वाला, मियाँ भी दानव बन बैठा ॥
इक झटके में बकरे का सिर,धड़ से अलग किया देखो।
भोली बेटी समझ न पायी, ये क्या किया मियाँ देखो ॥
रोज़ की भाँति आयी है, बकरे को देने पानी जी ।
कलम भी रोई मेरी लिखकर, ऐसी मर्म कहानी जी ॥
आज जरा सा भी देखो, पानी का बर्तन नही रीता ।
सोंच रही बालक बुद्धि , क्यों बकरा पानी नही पीता ॥
ईद के दिन भी सुस्त पड़ा है, क्यों मन में उल्लास नही ?
कटे शीश से पूछ रही, क्या मुन्ना तुझको प्यास नही ?
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