किले के तहखानों में छिपा है सिंधिया का खजाना, 'बीजक' है इस 'गंगाजली' की चाबी Follow us on:- www.aajtak2.blogspot.com


किले के तहखानों में छिपा है सिंधिया का खजाना, 'बीजक' है इस 'गंगाजली' की चाबी

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ग्वालियर। 30 सितंबर को स्व. माधवराव सिंधिया की डेथ एनिवर्सरी मनाई जा रही है। इस अवसर पर www.aajtak2.blogspot.com आपको सिंधिया वंश के उस खजाने के बारे में बताया जा रहा है, जिसे 'गंगाजली' के नाम से जाना जाता है। ये खजाना आज भी ग्वालियर किले के तहखानों में दबा हुआ है। क्या है इस खजाने की कहानी...
‘गंगाजली’ तक पहुंचने के लिए जरूरी था ‘बीजक’
-इस खजाने को  सिंधिया महाराजाओं ने किले के कई तहखानों में सुरक्षित रखवा दिया था। 
-इन तहखानों को ‘गंगाजली’ नाम दिया गया था। 
-यहां तक पहुंचने के रास्तों का रहस्य कोड वर्ड के तौर पर ‘बीजक’ में महफूज रखा गया। 
-जयाजीराव ने 1857 के संघर्ष के दौरान बड़ी मुश्किल से पूर्वजों के इस खजाने को विद्रोहियों और अंग्रेज फौज से बचा कर रखा।
सिर्फ महाराजा जयाजीराव को मालूम था ‘बीजक’ का रहस्य
-‘बीजक’ का रहस्य सिर्फ महाराजा जानते थे। 
-1857 के गदर के दौरान महाराज जयाजीराव सिंधिया को यह चिंता हुई कि किले का सैनिक छावनी के रूप में उपयोग कर रहे अंग्रेज कहीं खज़ाने को अपने कब्जे में न ले लें। 
-साल 1886 में किला जब दोबारा सिंधिया प्रशासन को दिया गया, तब तक जयाजीराव बीमार रहने लगे थे। 
-वे अपने वारिस माधव राव सिंधिया 'द्वितीय' को इसका रहस्य बता पाते, इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

ग्वालियर किले में बना तहखाना, जहां कैदियों को फांसी दी जाती थी।
छुपे हुए तहखाने का दरवाज़ा खुल गया
-परन्तु माधवराव के भाग्य का सितारा अभी चमकने वाला था।
-एक दिन माधवराव अपने किले के एक गलियारे से गुज़र रहे थे। 
-इस रास्ते की तरफ कोई आता जाता नहीं था। 
-उस रास्ते से गुज़रते हुए अचानक माधवराव का पैर फिसला, संभलने के लिए उन्होंने पास के एक खंभे को पकड़ा।
-आश्चर्यजनक रूप से वह खम्भा एक तरफ झुक गया और एक गुप्त छुपे हुए तहखाने का दरवाज़ा खुल गया।





1857 के गदर के समय ग्वालियर पर जयाजीराव सिंधिया का शासन था। इन्हें खजाने का रहस्य पता था।
2 करोड़ चांदी के सिक्कों के साथ अन्य बहुमूल्य रत्न 
-माधवराव ने अपने सिपाहियों को बुलाया और तहखाने की छानबीन की। 
-उस तहखाने से माधवराव सिंधिया को 2 करोड़ चांदी के सिक्कों के साथ अन्य बहुमूल्य रत्न मिले। 
-इस खजाने के मिलने से माधवराव की आर्थिक स्थिति में बहुत वृद्धि हुई।


जयाजीराव के बेटे माधौ राव द्वीतीय। जयाजीराव खजाने का रहस्य बता पाते, इससे पहले ही उनकी मौत हो गई।
ज्योतिषी की मौत के साथ ही बीजक बना हमेशा के लिए रहस्य
-खजाने का एक तहखाना तो मिल गया था, लेकिन गंगाजली के बाकी खजानों की खोज तो अभी बाकी ही थी। 
-लिहाजा, अंग्रेजों की गतिविधियां खत्म होने के बाद एक बार फिर महाराज माधवराव सिंधिया 'द्वितीय' ने खजाने की खोज शुरू की। 
-इसमें उनकी मदद के लिए उनके पिता के समय का एक बुजुर्ग ज्योतिषी आगे आया। 
-उसने महाराज के सामने शर्त रखी कि उन्हें बगैर हथियार अकेले उसके साथ चलना होगा। महाराज राजी हो गए। 
-ज्योतिषी महाराज माधवराव 'द्वितीय' को अंधेरी भूलभुलैयानुमा सीढ़ियों से नीचे ले जाता हुआ ‘गंगाजली’ के एक तहखाने तक ले भी गया था। 
-इसी दौरान महाराजा को अपने पीछे कोई छाया नजर आई, तो उन्होंने बचाव में अपने राजदंड से अंधेरे में ही प्रहार किया और दौड़ कर ऊपर आ गए। 
-ऊपर खड़े सैनिकों को साथ ले कर जब वे वापस आए, तब उन्हें पता चला कि गलती से उन्होंने ज्योतिषी को मार दिया है। 
-लिहाजा, वह एक बार फिर वो बाकी खज़ाने से वंचित रह गए। 

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